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गायत्री जयन्ती विशेष : वह अविस्मरणीय दिवस | Gayatri Jayanti Vishesh Avismarniya Divas, Rishi Chintan

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Published on 31 May 2023 / In God Status

गायत्री जयन्ती विशेष : वह अविस्मरणीय दिवस | Gayatri Jayanti Vishesh Avismarniya Divas
Rishi Chintan Youtube Channel

प्रणाम समाप्त होने के कुछ ही क्षणों बाद शाँतिकुँज एवं ब्रह्मवर्चस् का कण-कण, यहाँ निवास करने वाले सभी कार्यकर्त्ताओं का तन-मन-जीवन बिलख उठा। अब सभी को बता दिया गया था कि गुरुदेव ने देह छोड़ दी है। अगणित शिष्य संतानों एवं भक्तों के प्रिय प्रभु अब देहातीत हो गए हैं। काल के अनुरोध पर भगवान महाकाल ने अपनी लोक-लीला का संवरण कर लिया है। जिसने भी, जहाँ पर यह खबर सुनी, वह वहीं पर अवाक् खड़ा रह गया। एक पल के लिए हर कोई निःशब्द, निस्पंद हो गया। सबका जीवन-रस जैसे निचुड़ गया। थके पाँव उठते ही न थे, लेकिन उन्हें उठना तो था ही। असह्य वेदना से भीगे जन परमपूज्य गुरुदेव के अंतिम दर्शनों के लिए चल पड़े।

सजल श्रद्धा एवं प्रखर प्रज्ञा के पास आज जहाँ चबूतरा बना है, तब वहाँ खाली जगह थी। वहीं चिता के महायज्ञ की वेदिका सजाई गई थी। ठीक सामने स्वागत कक्ष के पास माताजी तख्त पर बिछाए गए आसन पर बैठी थीं। पास ही परिवार के अन्य सभी सदस्य खड़े थे। आस-पास कार्यकर्त्ताओं की भारी भीड़ थी। सभी की वाणी मौन थी, पर हृदय मुखर थे। हर आँख अश्रु का निर्झर बनी हुई थी। आसमान पर भगवान् सूर्य इस दृश्य के साक्षी बने हुए थे। कण-कण में बिखरी माता गायत्री की समस्त चैतन्यता उसी दिन उसी स्थल पर सघनित हो गई थी। भगवान सविता देव एवं उनकी अभिन्न शक्ति माता गायत्री की उपस्थिति में गायत्री जयंती के दिन यज्ञपुरुष गुरुदेव अपने जीवन की अंतिम आहुति दे रहे थे। यह उनके जीवन-यज्ञ की पूर्णाहुति थी।

आज वह अपने शरीर को ‘इदं न मम् ‘ कहते हुए यज्ञवेदी में अर्पित कर चुके थे। यज्ञ ज्वालाएँ धधकीं। अग्निदेव अपने समूचे तेज के साथ प्रकट हुए। वातावरण में अनेकों की अनेक सिसकियाँ एक साथ मंद रव के साथ विलीन हुईं। समूचे परिवार का कण-कण और भी अधिक करुणार्द्र हो गया, सभी विह्वल खड़े थे। परमतपस्वी गुरुदेव का तेज अग्नि और सूर्य से मिल रहा था। सूर्य की सहस्रों रश्मियों से उनकी चेतना के स्वर झर रहे थे। कुछ ऐसा लग रहा था, जैसे वह स्वयं कह रहें हों, "तुम सब परेशान न हो, मैं कहीं भी गया नहीं हूँ, यहीं पर हूँ और यहीं पर रहूँगा। मैंने तो केवल पुरानी पड़ गई देह को छोड़ा है, मेरी चेतना तो यहीं पर है। वह युगों-युगों तक यहीं रहकर यहाँ रहने वालों को, यहाँ आने वालों को प्रेरणा व प्रकाश देती रहेगी। मैं तो बस साकार से निराकार हुआ हूँ, पहचान सको तो मुझे शाँतिकुँज के क्रियाकलापों में पहचानो! ढूँढ़ो!" वर्ष 1990 की गायत्री जयंती में साकार से निराकार हुए प्रभु के इन स्वरों की सार्थकता इस गायत्री जयंती की पुण्य वेला में प्रकट हो रही है। हम सबको उन्हें शाँतिकुँज रूपी उनके विराट् शरीर की गतिविधियों में पाना है और स्वयं को इनके विस्तार के लिए अर्पित कर देना है।

http://literature.awgp.org/akh....andjyoti/2002/May/v1

Rishi Chintan Channel के द्वारा युग ऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी के विचारों को जन जन तक पहुँचाने का एक छोटा सा प्रयास है।

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अखण्ड-ज्योति परिवार के हर सदस्य को अपना स्वरूप और स्थान जानना चाहिये और तदनुसार अपनी विचार शैली एवं कार्य पद्धति का निर्माण करना चाहिये।

जिन घड़ियों में हम लोग जीवन-यापन कर रहे हैं, वे इतिहास की असाधारण घड़ियां हैं। इन दिनों एक ऐसे नये युग के सृजन का सूत्रपात हो रहा है- जो मानव समाज को सामूहिक आत्म-हत्या करने से बचाकर चिर-स्थायी सुख-शांति की सम्भावनायें उत्पन्न कर सकेगा और इस धरती पर स्वर्गीय वातावरण का निर्माण हो सकेगा।

यह स्वप्न नहीं एक सुनिश्चित सचाई है। आगामी कल बहुत ही शानदार, सुनहरा और स्वर्गीय सुख-शांति से भरा-पूरा आ रहा है, उसे पाकर मानवता धन्य हो उठेगी।

पर यह महान परिवर्तन अनायास ही न हो जायेगा। इसके लिये समुद्र-मंथन जैसा, देवासुर संग्राम जैसा, गंगावतरण जैसा, लंका विजय जैसा, महाभारत जैसा, गोवर्धन उठाने जैसा- महान प्रयत्न एवं पुरुषार्थ करना होगा। सृष्टि के महान परिवर्तन अनायास ही नहीं हो जाते। उनकी एक अति विस्तृत भूमिका होती है। और उस भूमिका का अपना अमर इतिहास होता है, जिसकी चर्चा कहते-सुनते रहकर लोग युग−युग तक आदर्शवादिता की दिशा में बढ़ते चलने का प्रकाश प्राप्त करते रहते हैं। अगली घड़िया ऐसी ही आने वाली हैं, जिनमें प्रबुद्ध, सजग एवं सुसंस्कारी आत्माओं को महत्वपूर्ण भूमिकायें प्रस्तुत करनी होंगी।

अखण्ड-ज्योति परिवार के परिजनों को युग-निर्माण की पुण्य प्रक्रिया में अग्रिम मोर्चा सम्भालना है। उन्हें अपने को- अपने साथी सहचरों को सजग, तत्पर, संगठित एवं विस्तृत करना है। कल तक हम निरुत्साहित थे, आज हमें उत्साहित, स्फूर्तिवान और और प्रयत्नशील बनना है। सबसे पहला काम अपने को, अपने परिवार को, संगठित, सक्रिय एवं विस्तृत बनाना है। यों हम समय-समय पर उद्बोधन करते रहे हैं, पर अब उतने से ही काम न चलेगा।

!! हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा। हम बदलेंगे-युग बदलेगा !!
सावधान! युग बदल रहा है।
सावधान। नया युग आ रहा है।
हमारी युग निर्माण योजना- सफल हो, सफल हो, सफल हो।
हमारा युग निर्माण सत्संकल्प- पूर्ण हो, पूर्ण हो, पूर्ण हो।
इक्कीसवीं सदी- उज्ज्वल भविष्य।
वन्दे- वेद मातरम्।

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